एक लाइब्रेरी जो कभी अपने दरवाज़े बंद नहीं करती
किताबों की दुनिया जहां समय की कोई पाबंदी नहीं
कभी लाइब्रेरी का मतलब था सुबह के खुलने और शाम के बंद होने का समय जान लेना। लेकिन अब हर पढ़ने वाला जानता है कि ज्ञान का कोई समय तय नहीं होता। जब आधी रात को कोई विचार दस्तक देता है या एक पुरानी किताब की तलाश होती है तो जवाब भी वहीं चाहिए होता है। यही वजह है कि अब एक ऐसी लाइब्रेरी की ज़रूरत है जो कभी बंद नहीं होती। वह हमेशा तैयार रहे नए पन्ने पलटाने के लिए।
ऑनलाइन लाइब्रेरीज़ ने यह कल्पना सच कर दी है। किताबें अब अलमारियों में बंद नहीं रहीं बल्कि स्क्रीन पर खुलती हैं बिना किसी समय सीमा के। कोई इंतजार नहीं कोई लाइब्रेरियन नहीं और सबसे बड़ी बात यह कि किसी छुट्टी का डर भी नहीं।
पढ़ाई के मायने जब सुविधा से जुड़ते हैं
ऑनलाइन पुस्तकालय न सिर्फ सुविधा देते हैं बल्कि कई बार किताबों तक पहुंच ही संभव बनाते हैं। छोटे शहरों में जहां अच्छा पुस्तक संग्रह नहीं होता या विदेशों में रहकर मातृभाषा की किताबों को ढूंढना मुश्किल होता है वहीं ये ई-लाइब्रेरीज़ काम आती हैं। पढ़ने की स्वतंत्रता को जब तक इंटरनेट है तब तक कोई रोक नहीं सकता।
पढ़ने का वक्त अब घड़ी के हिसाब से नहीं चलता। नींद उड़ गई तो एक अध्याय पढ़ लिया मन बोझिल हुआ तो कविता में सुकून खोज लिया। यह स्वतंत्रता पारंपरिक लाइब्रेरी में मिलनी मुश्किल थी।
जब किताबें आसान नहीं होती तब भी पहुंच संभव हो जाती है
हर किताब हर जगह नहीं मिलती। कई बार वह पांडुलिपि होती है जो छप नहीं पाती या पुराना संस्करण जो अब बाजार में नहीं मिलता। इसी कमी को भरते हैं ई-पुस्तकालय जो संग्रह करते हैं दुर्लभ साहित्य को।
Zlibrary, Library Genesis और Anna’s Archive को पूरक बनाते हुए दुर्लभ पुस्तकों की कमी पूरी करता है। यह केवल किताबों का भंडार नहीं है बल्कि उन कहानियों का घर है जिन्हें कहीं और तलाशना कठिन होता है।
कुछ विशेष उदाहरणों को देखना उपयोगी होगा जो इस विचार को और स्पष्ट करते हैं:
भाषा की सीमाएं पार करना
बहुभाषी संग्रह वे किताबें पढ़ने का अवसर देते हैं जो किसी एक भाषा या देश में सीमित होतीं। विदेशी साहित्य या अनुवाद अब आसानी से सुलभ हो जाता है बिना किसी आयात या विशेष सदस्यता के।
पुरानी किताबों की पुनर्खोज
ऐसी किताबें जो अब छपनी बंद हो गई हैं या जिनके लेखक भुला दिए गए उन्हें ढूंढना इन डिजिटल लाइब्रेरीज़ की खासियत है। यह न सिर्फ पढ़ने वालों को लाभ देता है बल्कि साहित्य के पुनरुद्धार में भी योगदान करता है।
अनियमित पाठकों के लिए आदर्श
जो रोज पढ़ते नहीं पर जब पढ़ते हैं तो खूब पढ़ते हैं उनके लिए यह सुविधा बेमिसाल है। कभी सप्ताहांत में पांच सौ पन्नों की आत्मकथा पढ़ लेना और फिर एक महीने कुछ न पढ़ना अब संभव हो जाता है।
इन बिंदुओं के बाद भी पढ़ने का आकर्षण खत्म नहीं होता बल्कि यह सुविधा और प्रयोग की स्वतंत्रता उसे और गहरा बना देती है। कोई भी किताब जब चाहो तब उठाई जा सकती है और वहीं से पढ़ी जा सकती है जहां पिछली बार छोड़ी थी।
पढ़ने की आदत फिर से लौट रही है
कागज़ की किताबों का स्पर्श एक एहसास है जिसे कोई तकनीक नहीं बदल सकती लेकिन पढ़ने का लक्ष्य अब उस एहसास से बड़ा हो गया है। समय की कमी और जीवन की दौड़ में अगर कोई लाइब्रेरी हर वक्त खुली मिले तो किताबें फिर से रोजमर्रा का हिस्सा बन जाती हैं।
नई पीढ़ी अब पढ़ने की शुरुआत मोबाइल स्क्रीन से करती है और वहीं से उसका सफर बढ़ता है। अगर वह स्क्रीन उसे ज्ञान दे रही है विचार दे रही है और कल्पना की उड़ान दे रही है तो यह बदलाव स्वागत योग्य है।
जहां किताबें इंतजार नहीं करतीं
पढ़ने की आदत को जब सुविधा मिलती है तो वह आदत धीरे-धीरे जरूरत बन जाती है। एक किताब से दूसरी और फिर तीसरी की ओर बढ़ना आसान हो जाता है जब लाइब्रेरी की दीवारें अदृश्य हों और दरवाजे कभी बंद न हों। किताबें हमेशा तैयार रहें बुलावे पर आने को और हर पाठक तैयार रहे नए विचारों से मिलने को।
पढ़ने का मतलब अब सिर्फ एक गतिविधि नहीं बल्कि एक यात्रा बन गई है जिसमें पड़ाव नहीं सिर्फ रास्ते हैं। और इस यात्रा के लिए सबसे अच्छा साथी है एक ऐसी लाइब्रेरी जो कभी सोती नहीं कभी थमती नहीं।